एक सिर वाला रावण

सीता का जब उसने हरण किया था, इज्जत के फिर भी साथ रखा 
ना कभी उसका अपमान किया ,ना उसके खिलाफ कभी हाथ रखा 
आज के युग का ये जो है रावण, ये मुझे कुछ ज्यादा मक्कारी लगता है
तुझ एक सिर वाले रावण का डर है ,दस सिर वाला तो अब संस्कारी लगता है

खुश होता है एक रावण दूजे को जलाकर, जरा झांक तूने कितना स्वार्थ रखा 
कितनी सीताओं का अपमान किया ,कितनी मर्यादाओं को तूने लांघ रखा 
ओ आज के रावण तेरे कुकर्मों के आगे तो, मुझे वो ही आज्ञाकारी लगता है
तुझ एक सिर वाले रावण का डर है ,दस सिर वाला तो अब संस्कारी लगता है

अपनी गंदी नजर का, उन्हीं पे दोषारोपण कर, वो रावण भी तूने मात रखा 
एक नारी का मान ना रख , दुष्ट दृष्टी ने तेरी, तेरी ही दुष्ट औकात रखा 
कुछ तो शर्मसार हो तू ,मुझे इस उजाले में,तू घोर अंधकरी सा  लगता है
तुझ एक सिर वाले रावण का डर है ,दस सिर वाला तो अब संस्कारी लगता है

- Swapna Sharma

Share

& Comment

1 Comments:

 

Copyright © 2015 Kavyagar.com™ is a registered trademark.

Designed by Templateism | Templatelib. Hosted on Blogger Platform.