हर बार युही लाचार रहीं तुम
मुख उधार का ले कब तक जी पाओगी
जब सीता ने इज्जत पायी ना तो तुम कैसे ही पाओगी
नारी तुम जब भी अबला थी और अबला ही रह जाओगी
उस युग में जब कुछ बदल न सकीं
इस कलियुग में फिर कैसे, क्या बदल पाओगी
जब भी परीक्षा दी तुमने, धरती में तुम ही क्यों समाओगी
जब सीता ने इज्जत पायी ना तो तुम कैसे ही पाओगी
नारी तुम जब भी अबला थी और अबला ही रह जाओगी
कहे जग सारा अर्धांगिनी तुमको
आधा हिस्सा पर तुम कैसे ही बन पाओगी
कब तक तुम बे इज्जत हो सबसे खुद को यूं सजाओगी
जब सीता ने इज्जत पायी ना तो तुम कैसे ही पाओगी
नारी तुम जब भी अबला थी और अबला ही रह जाओगी
अपने पैरों पे खड़ी यूं तो तुम
देखो फिर भी तुम खुद को खुद ही दबाओगी
एक दिन तो बदलेगा सब कुछ यूंही खुद को बहलाओगी
जब सीता ने इज्जत पायी ना तो तुम कैसे ही पाओगी
नारी तुम जब भी अबला थी और अबला ही रह जाओगी
तुमको तो बस बदलो तुम ही
कर खुद अपनी इज्जत , फिर सबसे करवाओगी
आप कुछ ना बदलेगा यहां ये कलियुग याद दिलाओगी
जब सीता ने इज्जत पायी ना तो तुम कैसे ही पाओगी
नारी तुम जब भी अबला थी और अबला ही रह जाओगी
Swapna sharma
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