अँधेरी सी मेरी इस वीरान जिंदगी में
कहीं भी तो कोई दिया जलता नहीं
अपने ही दिल में जब खोजती हूं उजाला
ना फिर भी तो मुझे सुकूँ मिलता नहीं
फटे से मेरे सपनो की जो एक छोटी सी चादर है
कोई भी तो देखो उसे सिलता नहीं
उस फटी सी चादर में जब भरती हूं कोई रंग
ना फिर भी तो मुझे सुकूँ मिलता नहीं
सूखे से मेरे इस दिल के दिल के बगीचे में,
कहीं भी तो कोई फूल खिलता नहीं
हरा भरा सा करने की जो करती हूं कोशिश
ना फिर भी तो मुझे सुकूँ मिलता नहीं
सीधे साधे से मेरे इन भावों में
कैसी भी तो देखो कोई कुटिलता नहीं
दुनिया जैसी बनने की जब करती हूं कोशिश
ना फिर भी तो मुझे सुकूँ मिलता नहीं - Swapna Sharma
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